Sunday, December 27, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

 समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /156                       दिसंबर 2020

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 27.12.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


भावना सक्सैना




01.

मैंने पिरोये

टुकड़े रात के

झरोखे से चाँद 

ताकता रहा,

अपलक!

नींद रूठी हुई 

कहीं जा छिपी


02.

बरसते हो जब,

तुम खोजते सौंधी महक

मैं नए चिने पलस्तर-सी

नमी खोजती सख्त हो जाने को

सदियों के पुरुष से 

तुम खोजते समर्पण,

मैं नत,

बस तेज़ हवा बह जाने तक।


03. मौसम पुराने

चित्र : प्रीति अग्रवाल 

धुंध कोहरा खा गया सब

धूप के मौसम पुराने

खत लिखे थे एक दिन जो

पढ़ के फिर रोए दीवाने...

उन खतों से झाँकते हैं

अनगिन सुनहरे स्नेह के क्षण

भीगकर कोहरे में भी 

स्पष्ट ज्यों, नया हो दर्पण।

  • 64, प्रथम तल, इंद्रप्रस्थ कॉलोनी, सेक्टर 30-33, फरीदाबाद, हरियाणा-121003

Sunday, December 20, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /155                       दिसंबर 2020

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 20.12.2020 
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


पुष्पा मेहरा 


01.

धूप में तपी, काँटों में चली, 

पानी में रंग-सी मिली-

सीप बन मोती पालती रही,

अब अँधेरे में, 

सूरज बन चमकने दो मुझे।


02.

रंगमंच है, 

अभिनेता हैं 

विभीषण के मुखौटे में छिपे 

रावण की खोज ज़ारी है।

03.

साँझ ढल रही थी 

वार्तालाप चल रहा था 

जंगल कट रहे हैं, जंगल छा रहा है।

किस-किसका कैसा?

एक आवाज़ ....देर तक गूँजी

उस ओर ध्यान जाता कि 

रेखाचित्र : (स्व. बी.मोहन नेगी )
पहले ही सब शांत हो चुका था।  

04.

 आग की ज्वलनशीलता का 

आभास होता तो

चमक की दीवानी मैं-

सबकी आँख बचा 

क्यों जला बैठती अपना हाथ! 

  • बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598

Sunday, December 13, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /154                       दिसंबर 2020

 

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार 13.12.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


शोभा रस्तोगी 'शोभा' 




01.

भूलने लगती हूँ मैं 

अपना नाम, गली, शहर 

तेरी याद महक बन 

झंकृत कर जाती है साँसें 

रच देती है हाथों में मेहँदी 

पाँवों में महावर 

और मैं ...

ढूँढने लगती हूँ

तेरी खुशबू 

हर व्यथा के

कपड़े उघाड़। 

02.

तुम देखते हो चाँद  

रेखाचित्र : सिद्धेश्वर 

अँजुरी में भरकर

उछाल देते हो एक चुम्बन

जो लहराता बलखाता 

उड़ान भरता है शशि पथ पर

फ़िर वापस हो लेता है 

और सज जाता है 

ठीक बीचोंबीच 

मेरी पेशानी के। 

  • आर जेड डब्ल्यू-208-बी, डी.डी.ए. पार्क रोड, राजनगर-2, पालम कालोनी, नई दिल्ली-77/मो. 09650267277

Sunday, December 6, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /153                       दिसंबर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 06.12.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


शील कौशिक 






01. असमंजस में हैं परिंदें

असमंजस में हैं परिंदें
पेड़ों की बजाय
इमारतों को उगते देख
सोचते हैं
भला वो शाख कहाँ से लायें
जिस पर वो कर सकें बसेरा

02. स्वछन्द बदली

आस लगाकर मुग्ध हो ताक रहे थे सभी
उस स्वछन्द बदली को
यकायक अँगूठा दिखाती
छायाचित्र  : उमेश महादोषी 
हवा संग तेजी से भाग गई वह
सबके सामने

03. बारिश के बाद

वर्षा के बाद की धूप
रचती है तिलिस्म
हवा में लटकी बूँदों में
इन्द्रधनुष सजाकर
  • मेजर हाउस नं. 17, हुडा सेक्टर-20, पार्ट-1, सिरसा-125055, हरि./मो. 09416847107 

Sunday, November 29, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /152                       नवम्बर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 29.11.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


ज्योत्स्ना  प्रदीप 



01.


कुछ लोगों ने

नेकियों पर

बोली लगाई

किसी की

प्रत्युत्तर

आवाज़ न आई!


02.


दिन अब ये भी

आने लगे 

हमारे रीति-रिवाज़

समय की चौकी में

शिकायत दर्ज़

कराने लगे!


03.


तुम

रेखाचित्र : अनुभूति गुप्ता 

उस समय हमें

छोड़कर लौट रहे थे

जब आँसुओं के

गर्म-कुण्ड में

हम औट रहे थे!

  • मकान 32,गली नं. 09, न्यू गुरुनानक नगर ,गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड जालंधर-144013, पंजाब/मो. 06284048117

Sunday, November 22, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /151                       नवंबर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}


रविवार  : 22.11.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


नारायण सिंह निर्दाेष





01. सामाजिक-विकास

हम ठहरे

पुराने ज़माने के लोग;

प्यार से खींचिए

अगर इनके गाल

तो खि़लाफत पर उतर आते हैं

बच्चे।


12. एक अलग सुबह


रात भर चलते रहने के बाद

जब होती हुई

एक सुबह को देखा,

तो वह सुबह/और सुबहों से

कुछ अलग-सी दिखी।


पथरीले फर्श को तोड़कर

छायाचित्र : उमेश महादोषी 

उग आई

वह मुलायम दूब

मुझे बहुत अच्छी लगी।


  • सी-21, लैह (LEIAH) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096/मो. 09650289030

Sunday, November 15, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /150                      नवम्बर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 15.11.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


ज्योत्स्ना शर्मा 




01.

देखे...
हवाओं के सितम
और जागती रही 
बेचैन रात....
ख़्वाहिश में,
चैन से सोने की 
तेज़ी से...
भागती रही। 

02.

हौले से सहला,
आ ..तुझे गोद में
प्यार से सुलाऊँ...
बदन निष्कम्प !
काँपती रूह को
ढाँढस कैसे बँधाऊँ?
रेखाचित्र : राजेंद्र परदेसी 

03.

दूर क्षितिज में
करता वंदन
नभ नित
साँझ-सकारे
प्रतिपूजन में
धरकर दीप धरा भी 
मिलती बाँह पसारे!
  • एच-604, प्रमुख हिल्स, छरवाडा रोड, वापी, जिला-वलसाड-396191, गुजरात/मो. 09824321053

Sunday, November 8, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /149                       नवम्बर  2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}


रविवार  : 08.11.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेग।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


उमेश महादोषी




01.


तुम याद आते रहे

मैं भूलता रहा

मैंने देखा है 

कितनी ही बार

एक जहरीला साँप

झूला झूलता रहा।


02.


परस्पर गुँथे

फंदों में

उलझ गये हैं बाल

मेरे महबूब!

सँभाल सकता है

तो सँभाल।


03.


हवा से

ब्याही गयी है तरंग

देखो-

ये खोखली उमंग!


04.


समय कुछ नहीं होता

एक हल्की-सी फूक से

उड़ जाता है

मन मजबूत हो

तो पेट की भूख से

कुछ नहीं होता!

चित्र : प्रीती अग्रवाल 


05.


प्रेम करने से

क्या होता है!

क्षणभर झूले पर

साथ बैठने का दृश्य कोई

आँखों में भर भी जाये

एक बार मन भर जाने से

क्या होता है!

  • 121, इन्द्रापुरम, निकट बीडीए कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मो. 09458929004


Sunday, November 1, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

 समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /148                        नवम्बर 2020


क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 01.11.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



अमरेन्द्र सुमन




01.

झूठ के गुलदस्ते में

सच के फूलों को देखना 

प्रतिकार नहीं

फिर भी क्यूँ 

यह हर एक को स्वीकार्य नहीं?


02.

चीन

तलाश रहा 

पचास के दशक से 

अब तक सिर्फ अपने 

स्वार्थ और वर्चस्व की जमीन


सिर्फ झूठ, धोखा 

और फरेब में ही प्रवीण। 


03. माँ -एक

सुकून भरी नींद

हाथ का पंखा है माँ

चित्र : प्रीति अग्रवाल 
सुहागिन सिन्दूर

और चूड़ी-शंखा है माँ


04. माँ -दो

नैनों की प्रतिष्ठा

प्रश्रय प्रतिज्ञा है माँ

द्रौपदी-उत्तरा

सविनय अवज्ञा है माँ

  • ’’मणि विला’’ प्राईमरी स्कूल के पीछे, केवटपाड़ा (मोरटंगा रोड) दुमका-814101, झारखण्ड/मो. 09431779546

Sunday, October 25, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /147                       अक्टूबर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 25.10.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


राजेश ’ललित’ शर्मा/147




01. 

कहाँ जाकर डूबे हम

ओस की एक बूँद में

अधखिली कली 

जैसे उनींदी आँखों से

कोई सपना

आँसू बनकर 

फिसल पड़ा हो 

और हम

सैलाब में ओस की

डूब गये हों।


02. 

थी तो मेरे फूलों में,

महक उतनी ही,

गुलदस्ता मगर तुमने!!

वो दूसरा चुना??

रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 

वजह जो भी हो;

तुम्हारे पास ही रही।


03.

लोग कुछ 

यूँ निकलते हैं; कतराकर मुझसे

जैसे जेठ का महीना हो

मैं लू का थपेड़ा हूँ

झुलसा दूँगा उनको

बाहर भी और भीतर भी

  • बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484

Sunday, October 18, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /146                       अक्टूबर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 18.10.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!

ज्योत्स्ना प्रदीप




01.

कुछ तो है

जो

पीछे छूट रहा है

कोई घर में

कोई बाहर लूट रहा है!


02.

जब तक

पिता की चिता

नहीं जली थी

ये दुनिया

कितनी भली थी!


03.


शिशिर की धूप

घर में ऐसे आती है

मनचली नंद के कमरे में

जैसे

भाभी, दबे पाँव जाती है!

रेखाचित्र : (स्व. बी.मोहन नेगी)


04. स्पर्श 


रात्रि के 

हल्के स्पर्श से

पौधा सो गया

मानो कोई अनाथ!

सपने में लिये

माँ का हाथ।

  • मकान 32,गली नं. 09, न्यू गुरुनानक नगर ,गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड जालंधर-144013, पंजाब/मो. 06284048117

Sunday, October 11, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /145                       अक्टूबर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 11.10.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!

शशि पाधा
 



01.

छाज दिया था 
माँ ने 
हिदायतों से भरी 
पोटली भी साथ 
कैसी विडम्बना है 
जीवन की दुपहरी में 
मैं केवल 
दुःख बीनती हूँ 
और 
सार-सार सुख 
छाज में ही पड़ा रहता है 
बिखरा-सा!

02.

बहुत ज़िद्द थी 
मन की 
उदास होने की 
निराश होने की 
मना लिया उसे
रेखाचित्र : सिद्धेश्वर 
बहला दिया उसे  
ज़रा सा 
मुस्कुरा दिये 
हम 
अब देखो न 
सारी कायनात 
मुस्कुरा रही है।

03.

अब मैं वो नहीं 
जो पहले थी 
अब, मैं वो भी नहीं 
जो मैं होना चाहती हूँ 
इस होने 
न होने के बीच 
मैं जो हूँ 
उसे मैं जानती नहीं।
  • 174/3, त्रिकुटानगर, जम्मू-180012, जम्मू-कश्मीर

Sunday, October 4, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /144                      अक्टूबर 2020


क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 04.10.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


नारायण सिंह निर्दाेष



01. भटकाव

भटक  जाते हैं

अक्सर हम

अपना ही पीछा करने की

कोशिश में,

भीड़ को कुहनियों से

धकेलते हुए।


02. पलायन


ऐसे में

जब मैं बच्चों जैसा

हो चला हूं

मुझमें से

सभी बच्चे

दबे पाँव निकल गए हैं।


03. तुमसे प्यार हो जाने बाद


तुमसे प्यार हो जाने के बाद

यकायक/मुझे ऐसा लगा

जैसे कि,

आँखों से निकल कर

कोई चमगादड़ उड़ गई है।


➤सी-21, लैह (LEIAH) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096/मो. : 09650289030

Sunday, September 27, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /143                      सितम्बर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 27.09.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


ज्योत्स्ना शर्मा 





01.

हमारी...
समाज की...
पीड़ा की कोई सीमा न थी 
एक दुःखद, कड़वा सत्य 
अनावृत था... और...
‘तमाशबीनों’ के पास 
चादर न थी...
इतने निर्मम...
कैसे हो गए हम...??

02.

पड़ा है पर्स
चेन, बिखरे वस्त्र
और कोई भी 
आसपास नहीं
जाने क्यों...
इस खेत के गन्ने में
ज़रा भी
मिठास नहीं!

03.

पर्यावरण दिवस!
कुछ ऐसे मनाएँ
पेड़ लगाएँ 
और फिर...
करें दुआएँ..
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
कि...
उन पर लटकते 
फल ही नज़र आएँ !!!

04.

सड़क बोलती है-
जिधर चाहते हो
उधर मोड़ते हो, 
हैरत है लेकिन 
मैं जोड़ती हूँ 
तुम तोड़ते हो!
  • एच-604, प्रमुख हिल्स, छरवाडा रोड, वापी, जिला-वलसाड-396191, गुजरात/मो. 09824321053

Sunday, September 20, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /142                       सितम्बर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 20.09.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


भावना कुँअर





01. दर्द-2

मिलके साथ
हमने थे सजाए
प्यार की रोशनी की
हजारों दीए
समेटतें हैं अब
किरचों को दर्द की।

02. छाया

पाने को छाया
हम जा बैठे, 
पेड़ के नीचे
पर जाने क्यों 
रेखाचित्र : संध्या तिवारी 
डालियों ने 
धर-दबोचा हमें।

03. शिकन

मेरे चेहरे की शिकन
मचा देती थी
एक तूफान
उनके दिल में
पर आज
कैसा बदला ये मौसम
जो अब शिकन बन गई
उनके दिल बहलाने की वजह।
  • सिडनी, आस्ट्रेलिया/ ईमेल : bhawnak2002@gmail.com
  • भारत में : द्वारा श्री सी.बी.शर्मा, आदर्श कॉलोनी, एस.डी.डिग्री कॉलिज के सामने, मुज़फ़्फ़रनगर(उ.प्र.)