समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /146 अक्टूबर 2020
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
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रविवार : 18.10.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
ज्योत्स्ना प्रदीप
01.
कुछ तो है
जो
पीछे छूट रहा है
कोई घर में
कोई बाहर लूट रहा है!
02.
जब तक
पिता की चिता
नहीं जली थी
ये दुनिया
कितनी भली थी!
03.
शिशिर की धूप
घर में ऐसे आती है
मनचली नंद के कमरे में
जैसे
भाभी, दबे पाँव जाती है!
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रेखाचित्र : (स्व. बी.मोहन नेगी) |
04. स्पर्श
रात्रि के
हल्के स्पर्श से
पौधा सो गया
मानो कोई अनाथ!
सपने में लिये
माँ का हाथ।
- मकान 32,गली नं. 09, न्यू गुरुनानक नगर ,गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड जालंधर-144013, पंजाब/मो. 06284048117
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