Sunday, October 25, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /147                       अक्टूबर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 25.10.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


राजेश ’ललित’ शर्मा/147




01. 

कहाँ जाकर डूबे हम

ओस की एक बूँद में

अधखिली कली 

जैसे उनींदी आँखों से

कोई सपना

आँसू बनकर 

फिसल पड़ा हो 

और हम

सैलाब में ओस की

डूब गये हों।


02. 

थी तो मेरे फूलों में,

महक उतनी ही,

गुलदस्ता मगर तुमने!!

वो दूसरा चुना??

रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 

वजह जो भी हो;

तुम्हारे पास ही रही।


03.

लोग कुछ 

यूँ निकलते हैं; कतराकर मुझसे

जैसे जेठ का महीना हो

मैं लू का थपेड़ा हूँ

झुलसा दूँगा उनको

बाहर भी और भीतर भी

  • बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484

No comments:

Post a Comment