Sunday, December 31, 2017

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका              ब्लॉग अंक-03 / 05                   दिसम्बर  2017



रविवार  :  31.12.2017

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।



वंदना गुप्ता





01.

मैने उम्र की गुल्लक में 
रोज एक दिन डाला
और जिस दिन तोडा 
रीता ही पाया ... 

जाने/मैंने पहेली को  बूझा 
या पहेली ने मुझे...

02. 

पदचाप ध्वन्यात्मक बनाने हेतु 
जो 
उतारा गया हो 
खाल का लिबास 
अब बूँद-बूँद रिसता रक्त 
गवाह है उसकी मजबूरियों का

कितना छीला गया होगा रंदा मार मार

जाने किसकी ख्वाहिशों की प्रतिध्वनि है
छायाचित्र : उमेश महादोषी 
अब उसका वजूद!!!

03. 

नहीं उलीच पाती 
मन में ठहरे 
दर्द के समंदर को 
अंजुलि में भर-भर
बस खुद को
किनारे कर लेना भर 
सीखा मैंने

शोक संदेश 
अघोषित चुप्पियों को खोलने की 
चाबी नहीं हुआ करते .....
  • डी-19, राणा प्रताप रोड, आदर्श नगर, दिल्ली-110033 / मो. 09868077896

Sunday, December 24, 2017

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका             ब्लॉग अंक-03 / 04                    दिसम्बर  2017



रविवार  :  24.12.2017

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।


केशव शरण



01. एक दिन

एक दिन
प्रकृति मर जायेगी
रोयेगा ईश्वर
उसके बिन
तन्हा

02. मैं और तुम

मैं नहीं जानता
तुम्हारा पता
तुम कहाँ हो
लेकिन मैं हूँ यहाँ
अकेलेपन के नर्क में।

03. जीवन नया

आनंदपूर्ण भोगवाद गया
रेखाचित्र :
कमलेश चौरसिया 
अब जीवन नया

04. आकाश

आकाश दूर तक फैला है
लेकिन मैला है

05. धन्यता

सौ में
दो ने सुनी
कू-कू

धन्य हुई कोयल
  • एस 2/564 सिकरौल, वाराणसी-221002, उ.प्र./मो. 09415295137

Sunday, December 17, 2017

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका             ब्लॉग अंक-03 / 03                    दिसम्बर  2017



रविवार  :  17.12.2017

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।


मंजूषा मन



01.

दीवार पर टँगे 
कलेण्डर से हो गए हैं 
लोग,

गहरे दबा छुपा लेते हैं
इस्त्री किये चेहरे के पीछे
दर्द की रेखाएँ।

02.

आसान नहीं 
देख पाना
चेहरे के पीछे का चेहरा

और उस पर
कुछ लोगों के
कई-कई चेहरे हैं।

03.

कुछ ज़ख्मों का
न भरना ही अच्छा...

अपनी भूलों का 
एहसास 
बना रहता है।

04.
दुःख की सांकल
दर्द की बेड़ियाँ,
बाँधे मन 
जकड़े तन
टूटे न किसी सूरत
मन में बसी मूरत।
रेखाचित्र :
बी. मोहन नेगी
 

05.

सरल था कहना
उससे भी सरल था
सुन लेना...

पर... 
कठिन था
समझ पाना
और 
सहना सबसे कठिन...

  • द्वारा अम्बुजा सीमेंट फाउंडेशन, भाटापारा, ग्राम : रवान (Rawan)
जिला : बलौदा बाजार (Baloda Bazar)-493331, छत्तीसगढ़/मो. 09826812299

Sunday, December 10, 2017

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका             ब्लॉग अंक-03 / 02                    दिसम्बर  2017



रविवार  :  11.12.2017

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।


शोभा रस्तोगी 




01.


कट गयी उम्र 
करवटों में 
रात की मानिंद 
चँद बूँदों में सिमट गयी
प्यास 
दरिया तो बस
यूँ ही खड़ा रहा। 

02.

जब तेरी याद 
रड़कती है 
कलम पे कुछ
उग आता है 
और काट देता है 
फ़सल अक्षरों की 
काग़ज की धरती पर। 

03.

गई रात 
छायाचित्र : आकाश अग्रवाल 

आसमां रोता रहा 
धरती बन गई समंदर 
सुबह 
खिलखिला उठा नभ 
धरा अब भी...
वैसी ही...
सम्हाले खड़ी है 
पराया दर्द। 


  • आर जेड डब्ल्यू-208-बी, डी.डी.ए. पार्क रोड, राजनगर-2, पालम कालोनी, नई दिल्ली-77/मोबा. 09650267277

Sunday, December 3, 2017

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका             ब्लॉग अंक- 03 / 01                  दिसम्बर  2017



रविवार  :  03.12.2017

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।



राजेश ‘ललित’ शर्मा






01.

वक़्त को ,
पकड़ सकता था;
मैं भी, क़सम से।
क्षण भर ,
देर हुई;
और निकल गया
वो सर्र से।

02.

तुमने जो,
मुस्कराकर,
दिया था जो ज़ख़्म
अब भी हरा है।
टीस उठती है,
अब भी,
तुम हो कि;
लौट कर;
न आये कभी।

03.

मैं हूँ सवाल,
ख़ुद का?
मैं कहाँ ?
किसी का,
जवाब हूँ ?

04.

मैं ही निकला,
छायाचित्र :
अभिशक्ति गुप्ता 
कुछ कमअक्ल;
वो आया,
और समझा गया,
मुझे! मेरी ही,
बात का मतलब?

05े.

मुझे धूप को                                           
सीलन के उस पार ले जाना था;
उस पार ले जाने की उमंग और
ज़िंदगी को ज़ंग
एक साथ लग गया।

  • बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484