समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /144 अक्टूबर 2020
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 04.10.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
नारायण सिंह निर्दाेष
01. भटकाव
भटक जाते हैं
अक्सर हम
अपना ही पीछा करने की
कोशिश में,
भीड़ को कुहनियों से
धकेलते हुए।
02. पलायन
ऐसे में
जब मैं बच्चों जैसा
हो चला हूं
मुझमें से
सभी बच्चे
दबे पाँव निकल गए हैं।
03. तुमसे प्यार हो जाने बाद
तुमसे प्यार हो जाने के बाद
यकायक/मुझे ऐसा लगा
जैसे कि,
आँखों से निकल कर
कोई चमगादड़ उड़ गई है।
➤सी-21, लैह (LEIAH) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096/मो. : 09650289030
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