समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /149 नवम्बर 2020
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रविवार : 08.11.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेग।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
उमेश महादोषी
01.
तुम याद आते रहे
मैं भूलता रहा
मैंने देखा है
कितनी ही बार
एक जहरीला साँप
झूला झूलता रहा।
02.
परस्पर गुँथे
फंदों में
उलझ गये हैं बाल
मेरे महबूब!
सँभाल सकता है
तो सँभाल।
03.
हवा से
ब्याही गयी है तरंग
देखो-
ये खोखली उमंग!
04.
समय कुछ नहीं होता
एक हल्की-सी फूक से
उड़ जाता है
मन मजबूत हो
तो पेट की भूख से
कुछ नहीं होता!
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चित्र : प्रीती अग्रवाल |
05.
प्रेम करने से
क्या होता है!
क्षणभर झूले पर
साथ बैठने का दृश्य कोई
आँखों में भर भी जाये
एक बार मन भर जाने से
क्या होता है!
- 121, इन्द्रापुरम, निकट बीडीए कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मो. 09458929004
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