Saturday, October 1, 2016

प्रथम खण्ड के क्षणिकाकार-12

 समकालीन क्षणिका             खण्ड-01                  अप्रैल 2016


रविवार  :  02.10.2016

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित बेचैन कण्डियाल जी की क्षणिकाएँ।


बेचैन कण्डियाल


01. मुसाफिर
जिस 
राह पर भी बढूँ
नजर आती है
लालबत्ती,
जिन्दगी के
चौराहे पर खड़ा
एक भटका हुआ
मुसाफिर हूँ मैं।

02. बेवजह
आँखों में ही
रोके रखा 
अपने आँसुओं को मैंने,
कहीं-
भीग न जाये इनसे
दामन तेरा बेवजह।

03. ऐसा ही
रेखाचित्र : स्व. पारस दासोत 
सुबह, 
दोपहर,
साँझ, रात्रि,
तुमने/कह दिया
तो- 
होता होगा ऐसा ही।

04. ठहर गया
तुमने निकल जाने को
कहा तो मैं
हर्गिज निकल जाता,
शायद कल से/न आऊँ,
इसीलिये
आज ठहर गया।

05. इतना बेचैन
क्या मालूम था
कि इतना
बेचैन हो जायेगा,
वर्ना इतना न जलती शमाँ
कि पतंगा
खुदकुशी कर लेता।
  • ‘आश्ना’, सी ब्लॉक, लेन नं.4, सरस्वती विहार, अजबपुर खुर्द, देहरादून (उ.खण्ड) / मोबा. 09411532432

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