Saturday, October 1, 2016

प्रथम खण्ड के क्षणिकाकार-11

 समकालीन क्षणिका             खण्ड-01                  अप्रैल 2016


रविवार  :  02.10.2016

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’  के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित सुरेश सपन जी  की क्षणिकाएँ।


सुरेश सपन 





01. समुद्र जब भी मथा जायेगा, अमृत नहीं आदमी के दुष्कर्मो का फल ही निकलेगा, नदियों के सहारे जो आया है वही हलाहल विष निकलेगा। 
छायाचित्र : उमेश महादोषी 
02. यह उनकी जिद है वह जहर ही उगायेंगे जहर ही खायेंगें/पेट भर-भर दलील है जितने दिन हैं जिन्दगी के
शान से जियेगें।
03. नदी के पास बचे हैं दो ही रास्ते या तो वह धरती में समा जाये या तोडे़ सब तटबंध सारा कूडा-कचरा/गूह-मूत जिन घरों से आता है उन्हीं में छोड़ आये!
  • डॉ.सुरेश चन्द्र पाण्डेय, प्रधान वैज्ञानिक,विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनु. संस्थान, अल्मोड़ा(उ.खंड.)/मो. 09997896250

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