समकालीन क्षणिका खण्ड-01 अप्रैल 2016
पुष्पा मेहरा
वह ताड़ का पेड़
रोज़ धरती छूता है
सूर्य के आगे
वह भी झुकता है।
02.
सूनी गलियाँ
आज शोर भरी हैं,
ऊँघती हवाएँ भी
जाग उठीं हैँ,
चारों ओर सनसनी छाई है
कहीं कुछ तो घटा है।
03.
वक़्त ख़ामोश था,
बेख़ौफ़ था,
साथ चलता गया
हसीन पलों को -
छलता गया।
04.
नन्ही सी सुई गिर पड़ी,
बहुत ढूँढा नहीं मिली
हार मान कर मैंने
मोटे अक्षरों में लिख कर
बोर्ड गाड़ दिया-
‘सावधान!
यहाँ नन्ही सी सुई गिरी है,
गहरा घाव कर सकती है’।
05.
स्वाती की बूँदें झरीं
रेत में खोती रहीं
सीपी के उदर में समाईं
मोती बन उभरीं।
- बी-201, सूरजमल विहार दिल्ली-92/मोबाइल : 08800847398
सुन्दर क्षणिकाएँ…विशेषत: दूसरी और चौथी बहुत-कुछ कहती हैं।
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