Sunday, October 16, 2016

प्रथम खण्ड के क्षणिकाकार-15

 समकालीन क्षणिका             खण्ड-01                  अप्रैल 2016


रविवार  :  16.10.2016
क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित पुष्पा मेहरा जी की क्षणिकाएँ।


पुष्पा मेहरा






01.
वह ताड़ का पेड़
रोज़ धरती छूता है
सूर्य के आगे
वह भी झुकता है।

02. 
सूनी गलियाँ
आज शोर भरी हैं,
ऊँघती हवाएँ भी
जाग उठीं हैँ,
चारों ओर सनसनी छाई है 
कहीं कुछ तो घटा है।

03. 
वक़्त ख़ामोश था,
बेख़ौफ़ था,
साथ चलता गया
हसीन पलों को -
छलता गया।

04.
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
मेरे हाथ से
नन्ही सी सुई गिर पड़ी,
बहुत ढूँढा नहीं मिली
हार मान कर मैंने
मोटे अक्षरों में लिख कर 
बोर्ड गाड़ दिया-
‘सावधान!
यहाँ नन्ही सी सुई गिरी है,
गहरा घाव कर सकती है’।

05. 
स्वाती की बूँदें झरीं
रेत में खोती रहीं
सीपी के उदर में समाईं
मोती बन उभरीं।
  • बी-201, सूरजमल विहार दिल्ली-92/मोबाइल : 08800847398

1 comment:

  1. सुन्दर क्षणिकाएँ…विशेषत: दूसरी और चौथी बहुत-कुछ कहती हैं।

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