Sunday, July 30, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-19

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  30.07.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ जी की क्षणिका।


शैलेष गुप्त ‘वीर’



01.
उसने जब-जब
तुममें
संभावनाएँ तलाशीं,
तुम दैत्य हो गये!

02.
सपनों ने
जाल बुने,
गौरेया ने
अबके
दाने नहीं चुगे!

03.
गाँव से नगर
नगर से महानगर हो गये,
आदमी थे
जानवर हो गये!

04.
छुटकी/फिर से
रेखाचित्र : बी.मोहन नेगी 
‘छुटकी’ हो गयी
मायके आयी
माँ की गोद में
सो गयी!

05.
मत सोओ,
लड़ो इस अँधेरी-रात से
सूरज-चाँद न सही
जुगनू हो जाओ!

06.
बड़े जतन से
सपने बुने,
चिड़िया चुग गयी!

  •  24/18, राधा नगर, फतेहपुर-212601, उ.प्र./मो. 09839942005

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