Sunday, July 9, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-12

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  09.07.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल सुश्री हरकीरत हीर जी की क्षणिका।


हरकीरत हीर





01.
ज़रूरी है
कुछ शब्दों का पत्थर हो जाना
वर्ना समंदर समेट लेता है
हर बहता अक्षर ...

02.
सुना है/पतझड़ आ रहा है
ऐ ख़ुदा ...
इस देह से भी उतार देना
कुछ सूखे पत्ते ...

03.
कुछ खाली जगहों पर
मैंने रख दिए हैं पत्थर
हर चोट 
संभलना जो सिखा देती है

04.
तुम्हारे लफ़्ज़ भी तो 
रेखाचित्र : विज्ञान व्रत 

रुक जाते होंगे उन राहों पर
जैसे मेरी क़लम ठहर जाती है...
ये मुहब्बत के रस्ते भी
बड़े अज़ीब होते हैं ...

05.
चलो न आज
इन दरियाओं की पीठ पर 
लिख दें/उन एहसासों को
जो हमने कभी जिए थे
इक दूजे के नाम ...

06.
न ख़्वाबों में/सरसराहट हुई...
न ख़्यालों ने ही दस्तक दी 
बड़े क़रीब से चुरा ले गई 
फ़िर ज़िन्दगी ...
उम्र का इक पत्ता ...

  • 18 ईस्ट लेन, सुंदरपुर, हाउस न.-5, गुवाहाटी-5/मो. 09864171300

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