समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 30.07.2017
शिखा वार्ष्णेय
01.
हर एक के बस का नहीं
सच का हलाहल पीना,
जलधि सा धीर
और शिव सा कंठ चाहिए।
02.
उसने हर दिन एक ख्वाइश चुनी
और हर दिन पूरी कर ली
हम उनका पुलिन्दा बाँधे
सम्भालते रह गए।
03.
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| छाया चित्र : उमेश महादोषी |
भीड़ भरी सड़क पर मत जाना
तब से वो
अपने नाम की एक पगडंडी ढूँढती है।
04.
चलो कुरेदें दिनभर की बुआई
लें अँगडाई
लपेटें शाम को रात की रजाई में
ढक के आत्मा को मुँह तलक
चलो फिर आँख मींच कर सो जाएँ।
- 64, Wensleydale Avenue, Ilford& IG5 0NB, London (UK)/ईमेल : shikha.v20@gmail.com


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