Sunday, July 2, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-10

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  02.07.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल श्री नारायण सिंह निर्दोष जी की क्षणिका।


नारायण सिंह निर्दोष




01. ख्वाब
आँख में
कुछ पड़ गया है
या फिर
वो एक पुराना/ख्वाब है
जो/आँख में पड़े-पड़े
सड़ गया है।

02.
मैं देखता हूँ
मासूम बकरियों के झुण्ड
उनकी/देह सहलाते हुए चीते
और थर-थर काँपता जंगल!
रेखाचित्र : विज्ञान व्रत 

03.
ज़िन्दगी
मुखप्रष्ठ पर/छपी तुम
बहुत खूबसूरत हो
किन्तु, देखूँगा तुम्हें/जी भर
तमाम... बदसूरत... तस्वीरें
देख चुकने के उपरांत

04.
पाँवों में
फटी चप्पलों की कीमत
जमा ($)/जिस्म पर टंगे
चिथड़ों की कीमत
और कुल पर
शत-प्रतिशत छूट
बराबर (=)
गरीब की कुल कीमत

  • सी-21, लैह (स्म्प्।भ्) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096/मो. 09810131230 

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