Sunday, July 2, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-11

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  02.07.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी की क्षणिका।



मिथिलेश दीक्षित




01.
जहाँ भी 
देखी व्यथा है,
मेरे शब्दों ने/उतारी
वहाँ की
पूरी कथा है।

02.
बदल गये हैं अर्थ
पहुँचते
शब्दों तक ही शब्द 
लक्ष्य तक
जाने में असमर्थ!

03.
आयी नयी सदी
रेखाचित्र : रमेश गौतम 

जाने कहाँ-कहाँ से
बहने/हवा लगी।

04.
एक अकेला
नन्हा-सा/अस्तित्व
समय की/तीव्र धार से
लड़ता-लड़ता
पार लगा है।

05.
सारा जंगल/एक होकर
क्रोध से जलने लगा 
एक तिनके ने 
हवा का रुख 
बदलने को 
बग़ावत/की है शायद!

  • जी-91, सी, संजयगान्धीपुरम, लखनऊ-226016/मो. 09412549904

No comments:

Post a Comment