Sunday, January 29, 2017

प्रथम खण्ड के क्षणिकाकार-39

समकालीन क्षणिका             खण्ड-01                  अप्रैल 2016


रविवार  : 29 .01.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित शशि पाधा जी की क्षणिकाएँ। 



शशि पाधा 



01.
संदली धूप
चुपचाप
आ बैठी मेरी खिड़की पर
आज नहीं मिल पाऊँगी, सखि!
अन्धेरा/अभी भी बैठा है
मन के किसी कोने में

02.
तुम/पर्वत शिखरों पर जमी
हिम से
अपने फैसले पर
सदैव ही तटस्थ रहना चाहते हो
छाया चित्र : उमेश महादोषी 

और मैं/धूप कणी सी तुम्हें
हौले से छू के
अक्सर पिघला ही देती हूँ
बोलो- जीत किसकी?

03.
कितना विशाल
अथाह/है समन्दर
उसका पानी ????
चलो/किसी पहाड़ी नदी से
दोस्ती कर लें।

04.
कहते हैं
बहुत पहले
उससे भी पहले
न यह धरती थी
न अम्बर/न बादल/न सागर
पर मैं/इतना जानती हूँ कि-
बहुत पहले
उससे भी पहले
और शायद/उससे भी पहले
तुम थे - मैं थी
और प्रेम....

  • 10804, Sunset hills Rd, Reston VA, US 20190  ई मेल:  shashipadha@gmail.com

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