समकालीन क्षणिका खण्ड-01 अप्रैल 2016
रविवार : 15.01.2017
क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित श्री मुकुट सक्सेना जी की क्षणिकाएँ।
मुकुट सक्सेना
01.
कभी-कभी
भूली बिसरी यादें
संवेदन में ऐसे
आती हैं उतर
जैसे उभर आयें
गीले काग़ज़ पर
कार्बन-पेंसिल से
लिखे हुए अक्षर।
02.
सूखे कुछ पत्ते
हवा में उड़कर
बह चले
जल प्रवाह गौण हुआ
लगा
पत्ते ही गतिशील हैं!
03.
अनगिनत सुधियाँ
एकत्र हो गई हैं
दवा की खाली
सुन्दर सी शीशियाँ
जिन्हें रखने का/कुछ अर्थ नहीं
पर फेंका भी नहीं जा पाता!
मुकुट सक्सेना
01.
कभी-कभी
भूली बिसरी यादें
संवेदन में ऐसे
आती हैं उतर
जैसे उभर आयें
गीले काग़ज़ पर
कार्बन-पेंसिल से
लिखे हुए अक्षर।
02.
सूखे कुछ पत्ते
हवा में उड़कर
बह चले
जल प्रवाह गौण हुआ
![]() |
रेखाचित्र : राजेन्द्र परदेसी |
लगा
पत्ते ही गतिशील हैं!
03.
अनगिनत सुधियाँ
एकत्र हो गई हैं
दवा की खाली
सुन्दर सी शीशियाँ
जिन्हें रखने का/कुछ अर्थ नहीं
पर फेंका भी नहीं जा पाता!
- 5-ग 17, जवाहर नगर, जयपुर-302004 (राज.)/मोबा. 09828089417
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