Sunday, September 18, 2016

प्रथम खण्ड के क्षणिकाकार-08

समकालीन क्षणिका             खण्ड-01                  अप्रैल 2016


रविवार  :  18.09.2016
क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’  के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित नारायण सिंह निर्दोष जी की क्षणिकाएँ। 


नारायण सिंह निर्दोष




01.
आज धूप, 
मेरी देह से 
मुझे बिन गुनगुनाये उतर गयी

मैं, चुप रहा 
उसकी आँख भर गयी

02.
खड़ा हूँ, सदियों से
सिर झुकाये

कभी, 
एक बबंडर आयेगा 
और मुझमें, 
नया सिर रोपकर चला जायेगा

03.
ज़िसमें कोई नहीं, 
रेखाचित्र : आरुषि ऐरन 

मैं भी नहीं 
यदि, कोई है 
तो वह/मुझ पर हँस गया है 
मुझमें,
यह कैसा शहर बस गया है?

04.
आसमां की सिम्त 
पत्थर उछालता वह बच्चा 
मुझे बहुत अच्छा लगा

सचमुच,
मैं बहुत ऊब गया हूँ

05.
कँटीली बाड़ को 
क्या सचमुच
सकून मिल गया है? 
सिर्फ़ 
ख़ुश्बुओं का बदन छिल गया है

  • सी-21, लैह (LEIAH) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096/मोबा. : 09810131230

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