समकालीन क्षणिका खण्ड-01 अप्रैल 2016
रविवार : 04.09.2016
क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित सुरेन्द्र वर्मा जी की क्षणिकाएँ।
सुरेन्द्र वर्मा
01.
तुमने अपने आँचल से
मेरा आईना साफ़ किया
लेकिन मैं अभी तक अपना चेहरा
देख नहीं सका
दर्पण साफ़ करते हुए
बीच में आ जाती हो तुम
02.
इतना हल्का हो जाऊं
कि टकराऊँ दीवालों से
चोट न लगे
इतना भारी रह सकूँ
कि कैसी भी हवा
मुझे अपनी ज़मीन से
उखाड़ न सके
पर ये वज़न-मध्यम
बताओ, कहां से लाऊँ!
03.
पुरावशेष समझ कर
![]() |
रेखाचित्र : सिद्धेश्वर |
स्मृतियों को सहेजा
नए आविष्कार गले लगाए
पर प्राप्त जो भी हुआ
-अनचाहा।
04.
बेशक -चाहीं थीं मैंने दीवारें
दीवारें,
जिनमें खिड़कियाँ और रोशनदान
होते हैं
जो बनाती हैं घर
मैंने कब चाही थी वो दीवार
जो बांटे
और आरपार न देख सके!
05.
मिट्टी में/आकाश में
हवा, पानी और प्रकाश में
तुम्हारी देह-गंध
कहाँ-कहाँ है?
कहाँ नहीं है
- तुम्हारी देह-गंध
- 10, एच.आई.जी.; 1-सर्कुलर रोड, इलाहाबाद (उ.प्र.)/मोबा. 09621222778
सुन्दर ब्लॉग… प्रभावपूर्ण क्षणिकाएँ। बधाई व शुभकामनाएँ।
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