Sunday, October 1, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-35

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  01.10.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ.  रमा द्विवेदी जी की क्षणिका। 



रमा द्विवेदी 




01. 
रेखाओं की संवेदना को,
कठोर न बनने दें,
नहीं तो,
मनुष्यता नष्ट हो जाएगी।

02.
रेखाएँ!
सीधी, आड़ी, तिरछी,
खींचकर देखिए,
कभी-कभी,
कुछ महत्वपूर्ण बन जाता है।

03.
रेखाएँ,
नदी के दो किनारे जैसी हों
और रिश्तों के बीच बहती रहें
मिठास, स्नेह और
आत्मीयता।

04. मैं बूँद हूँ        
मैं बूँद हूँ तो क्या 
लेकिन मैं 
खुद को आजमाने का 
हौसला रखती हूँ 
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
इसलिए तो
विशाल समंदर से 
खुद ही मिलती हूँ।

05. अलगाव
रिश्तों में
भौतिक रूप से 
अलगाव हो सकता है, पर           
दिल में कोमल भाव 
फूलों-सा महकते भी हैं 
और त्रासद पल
नासूर की तरह 
दहकते भी हैं...

  • फ़्लैट नं.102, इम्पीरिअल मनोर अपार्टमेंट, बेगमपेट, हैदराबाद-500016, आं. प्र. 

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