Sunday, August 20, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-24

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  20.08.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल श्री कृष्ण सुकुमार जी की क्षणिकाएँ। 


कृष्ण सुकुमार




01.
टूट रहा है कुछ! 
एक बोझ!
जैसे छत का 
ज़रूरी दीवारों के लिए 
दीवारों का बुनियाद के लिए 
ढह रहा है कुछ घर बनते हुए 
दबा रह जाऊँगा 
थामे हुए तेरा हाथ!

02.
छूट रहा है कुछ मुझसे 
जैसे पत्तियों से हरा रंग
पानी से आर्द्रता
मिट्टी से सौंधापन 
जो बचेगा 

रेखाचित्र : सिद्धेश्वर
कितना रह पाऊँ शेष!

03.
अर्थ देता है प्यार 
दो अव्यक्त रूहों को!
खींचते हुए 
बाहर से भीतर की ओर 
अतल गहराइयों में 
पसरे घुप्प अँधेरों में 
दिपदिपाने लगती हैं आत्मायें!

  • ए.एच.ई.सी., भा. प्रौद्यो. संस्थान, रुड़की-247667, उ.खण्ड/मो. 09917888819

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