Sunday, August 27, 2017

समकालीन क्षणिका : खण्ड-2 : मध्यान्तर मन्तव्य-04

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  27.08.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल चर्चित युवा व्यंग्यकार चक्रधर शुक्ल जी  के क्षणिका विषयक विचार। 


चक्रधर शुक्ल




क्षणिका पर विमर्श जरूरी


क्षणिका का कलेवर क्षणिक नहीं होता। उसे क्षणिक समझ कर जब कोई कवि/रचनाकार अपनी तमाम क्षणिकानुमा कविताओं को स्वयं लघु कविताएँ मान लेता है, तो ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है। अपने-अपने बुद्धि-विवेक से अपनी-अपनी परिभाषाएँ गढ़ लेने से क्षणिका विधा का भला नहीं हो सकता। क्षणिका, क्षणिक न होकर देर तक ध्वनित होती है जो क्षण में ऐसा विचार-मात्र कवि/क्षणिकाकार के अन्दर भर दे या सोचने के लिए विवश कर दे, आन्दोलित कर दे, वह क्षणिका है। क्षणिका के अस्तित्व को स्वीकारने के लिए उस पर गहन विमर्श की आवश्यकता है। क्षणिका का शिल्प, उसके मानक क्या होने चाहिए, इसका निर्धारण तो अनुभवी क्षणिकाकार/विद्वान/समालोचक ही कर सकता है, उसे पहल करनी चाहिए- 
(1) क्षणिका, कितनी पंक्तिओं की होनी चाहिए। 
(2) क्षणिका शिल्प-विधान की व्याख्या
(3) क्षणिका के विषय - सामाजिक, प्रकृति के साथ-साथ, आस-पास की जिंदगी की सच्चाई बयान करती हो या और कुछ। 
(4) क्षणिका मंे सपाट बयानी, हास्य-व्यंग्य परिभाषानुमा कथन की स्वीकारोक्ति को कितना स्थान मिलना चाहिए, यदि नहीं तो क्यों ?
(5) क्षणिका शीर्षक के साथ ज्यादा प्रभावी है कि बिना शीर्षक के?
(6) क्षणिकाकार - विसंगतियों पर पैनी नजर डालता है, उसे व्यंग्योक्ति के माध्यम से कहता है, तो उसे क्षणिका के रूप में स्वीकार किया जाय या नहीं। 
(7) क्षणिका को- क्षणिका ही कहा जाए... सूक्ष्मिका, सीपिका तमाम नाम न दिये जायें। 
      बिना शीर्षक वाली बात इसलिए मैंने उठायी अभी मेरे सामने से एक क्षणिका संकलन ‘जैसा मैंने देखा’ गुजरा। जिसके क्षणिकाकार ने अपने अभिमत में यह लिखा- मैं तो क्षणिकाएँ बिना शीर्षक के लिखता हूँ पर पुस्तक का रूप देने के लिए मैंने क्षणिकाओं के शीर्षक लिखे। इससे यह बात साफ हो जाती है कि शीर्षक क्षणिकाओं को प्रभावी बनाता है। 
      विमर्श की पक्षधरता मैं इसलिए भी कर रहा हूँ कि इधर कई क्षणिका विशेषांको का अवलोकन करने का अवसर मिला, जिनमंें शामिल कई रचनाओं को, उनके कवियों ने अन्यत्र लघु कविताओं के रूप में संबोधित किया है। क्षणिका विषेशांको में उन्हें क्षणिका के रूप मंे पाकर, पढ़कर भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है कि किसे क्षणिका कहा जाए, किसको लघु कविता। स्थिति को स्पष्ट करने के लिए क्षणिका पर विमर्श अति आवश्यक है। 
  • एल.आई.जी.-01ए, सिंगल स्टोरी, बर्रा-06ए कानपुर-208027 उ. प्र./मो. 09455511337

No comments:

Post a Comment