समकालीन क्षणिका खण्ड-01 अप्रैल 2016
रविवार : 25.12.2016
श्रद्धांजलि
आज बेहद दुःख की घड़ी है। लघुकथा के व्यास कहे जाने वाले वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सतीश दुबे साहब अपना शरीर त्यागकर परमात्मा में विलीन हो गए। भले वह कथा के क्षेत्र में प्रमुखतः प्रतिष्ठित हुए, लेकिन कविता, हाइकु एवं क्षणिका सहित अन्यान्य विधाओं में भी उनका योगदान स्मरणीय है। विगत वर्ष जब उनके हीरक जयन्ती वर्ष के उपलक्ष्य में अविराम साहित्यिकी का अंक प्रकाशित हुआ था तो उनकी कुछ क्षणिकाएँ हमारे संज्ञान में आई थीं, जिन्हें अविराम साहित्यिकी में प्रकाशित भी किया गया था। इससे पूर्व अविराम साहित्यिकी के क्षणिका विशेषांक के लिए भी उन्होंने एक महत्वपूर्ण आलेख के माध्यम से क्षणिका पर हम सबका मार्गदर्शन किया था। आज इस मंच पर हम उनकी क्षणिकाओं का स्मरण करते हुए डॉ. सतीश दुबे साहब को अपनी और इस मंच की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। डॉ. सतीश दुबे साहब की क्षणिकाएँ
01. सूत्रधार
काठ की पुतलियां
नाचने के लिए
कला प्रदर्शन के लिए
तब-
हरकत में आती हैं
जब-
सूत्रधार को
भूख सताती है।
तपते सूरज को-
पसीना पोंछते देख
रहमदिल बादल ने
अपनी छाया में ले
फुहारों की ठंडक-
शुरू कर दी।
कैनवास पर-
चलने वाली कूंची
झुकने लगी है
शायद-
कलाकार बुढ़या गया है।
मैं इसी शहर में
वापस लौट आया हूँ।
मुझे-
मेरा गाँव तो मिला ही नहीं!
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