समकालीन क्षणिका खण्ड-01 अप्रैल 2016
क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित सुश्री ज्योत्स्ना प्रदीप जी की क्षणिकाएँ।
ज्योत्स्ना प्रदीप
01. मज़बूत दुर्ग
वो बुज़ुर्ग है!
नहीं...,
उसकी छत्र-छाया में
बैठो तो सही
आज के तूफानों से बचाने वाला
वो ही तो
मज़बूत दुर्ग है।
02. अन्तर
नागफनी..
काँटों से भरी... पर सीधी,
उसे छूने से हर कोई कतराता है।
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छाया चित्र : उमेश महादोषी |
वो छुई-मुई....
हया से सिमटी,
जो चाहे उसे
यूँ ही छू जाता है।
03. घायल
वो पत्ता
सूखा, टूट गया
घायल है ज़मीं पर
सँभलकर चलना
चीखेगा बहुत
पाँव रखा जो....
04. भेड़िया
गुलाबो का कहना था-
जो कल गुज़र गया,
वो आदमी नहीं था
भेड़िया था, बस....
मेमने का लिबास पहना था
05. स्पर्श
रात्रि के हल्के स्पर्श से
पौधा सो गया
मानो कोई अनाथ!
सपने में लिये
माँ का हाथ।
- मकान-32, गली नं.-9, न्यू गुरुनानक नगर, गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड, जालंधर (पंजाब)
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