Sunday, December 4, 2016

प्रथम खण्ड : मध्यान्तर मन्तव्य-02

क्षणिका विमर्श  
यहाँ प्रस्तुत विचार ‘अविराम साहित्यिकी’ के क्षणिका विशेषांक (अक्टूबर-दिसम्बर 2013) में प्रकाशित जिन आलेखों से लिए गए हैं, उन एवम क्षणिका विषयक अन्य आलेखों को निम्न लिंक पर मूल रूप में पढ़ा जा सकता हैhttp://aviramsahitya.blogspot.in/search/label/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6



{क्षणिका की विकास यात्रा के सहयात्री के रूप में उसके साम्प्रतिक स्वरूप को समझना जरूरी है। इस दृष्टि से ‘अविराम साहित्यिकी’ के क्षणिका विशेषांक (अक्टूबर-दिसम्बर 2013) में प्रकाशित कई आलेखों को आधार भूमि के तौर पर देखा जा सकता है। निश्चित ही हमारा उद्देश्य क्षणिका को सतही लेखन से बचाकर आगे ले जाना है, अतः उन नए साथियों, जो क्षणिका को एक विधा के रूप में समझे बिना ही इस कारवाँ का हिस्सा बनने का हौसला रखते हैं, के समक्ष हम ‘अविराम साहित्यिकी’ के उक्त विशेषांक में शामिल आलेखों से अनुभवी और कविता के दायरे में हमारा मार्गदर्शन करने में सक्षम कुछ लेखकों के मन्तव्य की पुनर्प्रस्तुति यहाँ कर रहे हैं। निःसन्देह ये विचार ठेठ वक्तव्यों एवं अन्य सतही लेखन से इतर हमें क्षणिका के साम्प्रतिक काव्य रूप की ओर ले जाने का प्रयास करते हैं। प्रस्तुत हैं सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सुरेन्द्र वर्मा साहब के विचार।}


डॉ. सुरेन्द्र वर्मा






लघुकाय कविताओं के लिए ‘क्षणिका’ शब्द का पहली बार प्रयोग रवींद्रनाथ ठाकुर ने किया था, उनकी छोटी-छोटी रचनाओं का काव्य-संग्रह ‘क्षणिका’ नाम से प्रकाशित हुआ था, बाद में ‘स्फुलिंग’ नाम के काव्य-संग्रह में उन्होंने कुछ और छोटी रचनाएं दीं, जिनमें छोटी होने के बावजूद अर्थव्यंजना और भावों की गहनता स्पष्ट परिलक्षित होती है। रवींद्रनाथ की इन कविताओं की चर्चा अधिक नहीं हुई है, न ही भारतीय भाषाओं में -हिंदी सहित- इनका अनुवाद ही हुआ है। हां, ‘स्ट्रे बर्ड्स’ शीर्षक से ऐसी कविताओं का एक संकलन अंग्रेज़ी में ज़रूर आया है।
     क्षणिका का क्या अर्थ है और क्या सभी लघुकाय कविताओं के लिए यह एक उपयुक्त संज्ञा है? हिंदी शब्द-कोश में क्षणिका का केवल एक ही अर्थ मिलता है, बिजली। मेघ-द्युति क्षणभर के लिए चमकती है अतः, क्षणिका मेघ-विद्युत है। ज़ाहिर है, क्षणिका शब्द क्षण से बना है और क्षण के उपयोग के अनुसार, कई अर्थ हो सकते हैं। यह एक लमहा है, समय की गति का एक बिंदु है। साथ ही यह ‘अवसर’ और ‘अवकाश’ के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। शुभ काल के लिए, उत्सव और आनंद के अर्थ में, भी क्षण का प्रयोग देखा जा सकता है।...
     रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपनी लघु कविताओं को क्षणिकाएं क्यों कहा होगा? क्या सिर्फ इसलिए कि वे लघुकाय हैं और क्षण भर में उन्हें पढ़ा/सुना जा सकता है। याद कीजिए, जापानी हाइकु को ‘एक श्वासी’ कविता कहा गया है। हम एक सांस में उसे पढ़ जाते हैं. क्या छोटी कविताएं क्योंकि वे निमिश मात्र में पढ़ी जा सकती हैं, केवल इसीलिए क्षणिकाओं की कोटि में आती हैं? लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि रवींद्रनाथ क्षणिकाओं के रूप में उनमें कुछ और भी तलाश करते हैं। वे उनमें विद्युत की चमक भी देखते हैं। शायद इसी बात पर बल देने के लिए उन्होंने अपनी छोटी कविताओं के एक अन्य संग्रह को ‘स्फुलिंग’ कहा। ‘स्फुलिंग’ अग्नि कण या चिंगारी को कहते हैं। चिंगारी में निःसंदेह, वह कितनी भी क्षणिक क्यों न हो, एक चमक होती है और वह भड़क भी सकती है। उसकी तासीर बिलाशक तेज़ है। सही जगह मिल जाए तो आग लगा दे। कविता में जब तक यह चमक और भावों को उत्तेजित करने की तासीर न हो हम उसे कविता भला कैसे कह सकते हैं? जब हम क्षणिकाओं की बात करते हैं तो ये केवल ऐसी ही लघु कविताएं हो सकती हैं जो हमारी चेतना को एक नई चमक से आलोकित कर दें और यदि ज़रूरी हो तो उसे कर्म के लिए प्रज्ज्वलित भी करें। मुझे लगता है रवींद्रनाथ ठाकुर के मन में लघु कविताओं को ‘क्षणिकाएं’ या ‘स्फुलिंग’ कहते समय ये सारी बातें अवश्य रही होंगीं।

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