समकालीन क्षणिका खण्ड-01 अप्रैल 2016
रविवार : 20.11.2016
(अपरिहार्य कारणों से यह पोस्ट 06.11.2016 को प्रकाशित नहीं हो पाई थी।)
नित्यानंद गायेन
हर रात सुनता हूँ
किसी की सिसकियाँ
खोजता हूँ उसे
दीखता नहीं कोई अँधेरे में
तब मैं आईना देखता हूँ......
यूँ ही/तुम्हारा कवि
02.
गिर चुका पर्दा
रंग-मंच का
जा चुके दर्शक
किंतु/शेष है नाटक अभी!
03. तुम्हारी व्यथा की कहानी
तुम्हारी व्यथा की कहानी
मैंने रात भर
नदी को सुनाई,
नदी राह बदल कर
मेरी आँखों में/आ गयी ...
एक कवि।
04. तुम भी बेचैन हो शायद
हर बार खोलता हूँ द्वार
कि, हो जाये तुम्हारा दीदार
काले मेघों का जमघट
हटा नहीं अभी
तुम भी बेचैन हो शायद
ओ चाँद....
- 1093, टाइप-2, आर. के. पुरम, सेक्टर-5, नई दिल्ली-110022/मोबा, 08860297071
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