समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /131 जुलाई 2020
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रविवार : 05.07.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
शोभा रस्तोगी शोभा

01.
सघन अँधेरे को
चीर देता है प्यार
उसी प्यार के
एक लम्हे से
रूबरू होने का
ख्वाब....आज भी है।
02.
सुबह की चाय के
धुएँ से
निशा के गहराते धुँधलके तक
नहीं पूरा होता उसका दिन
बवंडर के धुँए
उसकी प्रतीक्षा में
जगे हैं पूरी रात।
03.
देखा जाए
यूँ भी करके कभी....
भूख को परोस दें रोटियाँ
नंगाई को शराफत के कपडे
तेरे मेरे मैं को पिघलाता प्यार
अकड़ को कराएँ ज़रा सज़दा
मोहब्बत के बुर्के में ढँक आतंक को
बेहिसाब इश्क़ की नदियाँ बहाएँ
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रेखाचित्र : रीना मौर्या मुस्कान |
कोई तो दिन हो ऐसा....
एक....ऐसा भी.....।
04.
यूँ कह तो दिया
तुमसे हैं हजारों
घूम आई पृथ्वी से शुक्र
सनि, मंगल, बुध और यम
चाँद भी न छोड़ा
तुम-सा मगर कोई न मिला।
- आर जेड डब्ल्यू-208-बी, डी.डी.ए. पार्क रोड, राजनगर-2, पालम कालोनी, नई दिल्ली-77/मोबा. 09650267277
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