Sunday, June 28, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /130                             जून  2020



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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 28.06.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



हरकीरत हीर







01.

सुनो
कुछ नज़्में मैंने
जहन में बंद कर 
फेंक दी है चाबी समंदर में
वो नज़्में जो कभी मैंने लिखी थीं
तुम्हारे नाम....

02.

याद है उसे ..
तुमने पहले ही दिन कहा था
नाचना नहीं आता तो चली जाओ यहाँ से
उसी दिन उसने ...
ख़ामोशी के पैरों में बाँध दिए थे घुंघरू
और सिखा दिया था उसे
सबके इशारों पर 
नाचना .....

03.

ख़ुदाया ...!
मैंने हज़ारों नज़्में तेरे नाम कीं
पर तू इक शब्द न 
मेरी झोली डाल सका ....

04.

मत रक्खा करो 
चित्र : प्रीति अग्रवाल 
तुम यूँ ख़याल मेरा
कम्बख्त बहुत तकलीफ़ देता है
साथ छूट जाने के बाद ...

05.

तुम्हारी मुहब्बत ने 
नज़्म को पढ़ा ही कब था
बस तलाशते रहे कुछ
नग्न अक्षर ...

  • 18, ईस्ट लेन, सुंदरपुर, हाउस नं. 05, गुवाहाटी-5, असम/मो. 09864171300

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