Sunday, July 12, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /132                          जुलाई 2020



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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 12.07.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



वंदना गुप्ता







01.

चुप्पियों का घोटूँ गला
या चाहतों को करूँ रुसवा
नीम-सी कड़वी ज़िन्दगी से
कैसे करूँ कोई शिकवा
फिर हो जाए नृत्य शायद आसान
जो छलनी तलवों में भरकर नमक
आज बोऊँ नया बिरवा

02.

आओ कि
चेहरे पर मेरे
मलना तुम दर्द का गुलाल
गुले-गुलज़ार हो जायेगी रूह
यूँ कि
मातम के शहर की होलियों में रंग
यूँ ही उडे़ले जाते हैं
वर्ना तो ज़िन्दगी
बेअर्थ-सी गुजर ही रही है
या ये कहूँ कि
दर्द के रंग से बेहतर
और कोई रंग होता है क्या भला?

जानते हो न
मुस्कुराहटों के बंजर शहर में
रेखाचित्र : रमेश गौतम 
नहीं उगा करते गुलाब...

03.

जब आस-पास जो हो रहा हो
उससे न फर्क पड़ रहा हो
विचारों भावों का न ज़खीरा हो
एक शून्य में आप अवस्थित हो
मन, बुद्धि, चित्त शांत हो गया हो
आँखें खुली हों
और रूह में न कोई स्पंदन हो
जरूरी नहीं उसके लिए आँख बंद करना
या अनावश्यक प्रयास करना
क्योंकि
यही तो है मन की
निर्विकल्प समाधि अवस्था!

  • डी-19, राणा प्रताप रोड, आदर्श नगर, दिल्ली-110033/मो. 09868077896

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