Sunday, July 19, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /133                          जुलाई 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 19.07.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



पुष्पा मेहरा








01. 

पंख खुले  
उड़ने लगी,
जितना ऊँचा उड़ी 
आसमान उतना ही 
ऊँचा होता गया, 
अब मैं हूँ
और है मेरा अन्तहीन आकाश...
  
02. 

जंगल में अकेले 
पलाश हँस रहा है,
इधर
शहर में लोग जल रहे हैं।

03. 


आओ!
प्रेम की तीक्ष्ण धार से 
पाषाण को तोड़कर 
रेखाचित्र : सिद्धेश्वर 
किसी कोमल-नई संरचना को 
आकार दें।

04. 

होलिका को जला कर हम 
फाग गाते रहे,
पता ही न चला   
होलिका ने;
कब, चुपके से 
हमारे मनों में घुसपैठ कर ली

  • बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598

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