समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 23 अप्रैल 2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
सुरेन्द्र वर्मा
01. हिरण की पुकार
ग़ज़ल बन जाती है
हिरण की पुकार
काश ग़ज़ल भी पुकारती
और दर्द मेरा
हिरण हो जाता
02. उथले पानी में
जैसे मेरा मन
नाचता है बेबस
मछलियाँ नाचती हैं
पानी में उथले
03. लेकिन अंधकार में भी
कितना अंधेरा है
हाथ को हाथ दिखाई नहीं देता
लेकिन अंधकार में भी
मेरा मन
तुम्हें ढूँढ़ लेता है
04. नहीं चाहिए मुझे
नहीं, नहीं चाहिए मुझे
ऐसा कोई देश
जहाँ अपना न हो कोई
न पराया....
अपने ‘आप’ को नहीं
होने देना है मुझे
ज़ाया.....
05. तुम्हारी आहट
कितनी ही बार
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रेखाचित्र : डॉ. सुरेंद्र वर्मा |
तुमने दस्तक दी
लेकिन तुम्हारी आहट
अनसुनी रह गई
जानते हुए
कि तुम सिरहाने हो
कहीं दूर तुम्हें देखता रहा
पुकारता रह गया
06. यह छोटी सी तितली
यह छोटी सी तितली
एक उम्मीद जगाती है
कि आसमान कभी रिक्त हुआ
तो सर्वप्रथम/यही उसे भरेगी
अपने रंग और अपनी उड़ान से
कॅनवस कभी खाली नहीं रहेगा
- 10, एच.आई.जी.; 1-सर्कुलर रोड, इलाहाबाद (उ.प्र.)/मो. 09621222778
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