Sunday, April 15, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 21                    अप्रैल 2018


रविवार  :  15.04.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


पुष्पा मेहरा 




01.

चलती-फ़िरती ज़िन्दगी है 
बारूद है, गोलियाँ हैं 
बीच में बूँद-बूँद सूखती नदी 
और नदी के उस पार है रंग भरता 
उभरता हुआ सूरज...

02. 

खिलते ही कली  
काँटों से घिर गई 
भोली-भाली थी 
पाँख-पाँख चिर गई।  

03.

तुम्हारे और मेरे बीच 
मौन संवाद चलता रहा 
आखें- कभी रोईं तो कभी हँसीं।

04. 

अँधेरा कितनी बार 
छायाचित्र : उमेश महादोषी 
मेरे द्वार पर आया,
पर मैं - 
संकल्प-मन्त्र पढ़, 
उसे भगाती रही,
अँधेरे-उजाले की 
लड़ाई अभी ज़ारी है।

05.

संस्कारों में पली माँ 
अनुभवों के हीरे 
बिन माँगे लुटा गई, 
सारे के सारे पत्थर से 
लुढ़क रहे हैं।
  • बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598

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