समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03/354 अक्टूबर 2024
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02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 13.10.2024
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
अनीता ललित
01.
गीली माटी से...
सोंधी-सोंधी महक...
आती हो जैसे
मेरी आँखों से...
तेरी यादों की महक...
आती है वैसे
02.
आँसू न समझे जो...
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चित्र : प्रीति अग्रवाल |
कितना खुशनसीब है...
वो कमअक़्ल!
मुस्कान ही न समझे जो...
कैसा बदनसीब है...
वो बेअक़्ल!
- 1/16, विवेक खंड, गोमतीनगर, लखनऊ-226010, उ.प्र.
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