Sunday, August 23, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /138                       अगस्त 2020



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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 23.08.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


शशि पाधा
 



01.

पीहर गई थी 
चाँदनी
विरही चाँद 
घुलता रहा, घुलता रहा 
उसकी वेदना 
घूँट-घूँट 
पीती रही 
रात 
और स्याह हो गई!

02.

धुँधला गये हैं 
रिश्ते 
बादलों से घिरी है 
नेह धूप
और कहीं खो गया है 
स्फटिक सा पारदर्शी 
अपनापन 

03.

पतझड़ के झरे पत्तों का 
बिछौना 
बर्फ़ की सफ़ेद 
चादर ओढ़े 
सो रही है 
धरती 
सपनों में आ रहा है 
चित्र : प्रीति अग्रवाल 
एक घुड़सवार
उसका राजकुमार 
सूरज

04.

रिश्तों की किताब 
रोज़ पढ़ो
सीखो 
अमल करो 
किन्तु-
ये पाठ क्यों रोज़ बदलते रहते हैं?
  • 174/3, त्रिकुटानगर, जम्मू-180012, जम्मू-कश्मीर

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