Sunday, December 15, 2024

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका              ब्लॉग अंक-04/363                         दिसम्बर 2024

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 15.12.2024
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!  



संगीता गाँधी





01.

बाट जोहता है पिता 

अब उसी रास्ते पर बेटे की 

जिस पर उसके पिता की 

आँखें टँगे-टँगे मौन हुईं।


छायाचित्र : उमेश महादोषी 
02.

एक ठंडी आग मेरे भीतर 

युगों से जलती है।

काश कोई एक टुकड़ा धूप 

इस हिम युग को पिघला सकता।


03.

आँखों की किवाड़ें तरसती हैं 

नींद मुद्द्त हुई खटखटाती नहीं

सपने फिर भी दबे पाँव 

साँकल खोल चले आते हैं।

  • सीबी-1, सी-ब्लॉक, हरिनगर क्लॉक टॉवर, निकट डीडीयू हॉस्पीटल, नयी दिल्ली-64/मो. 09213835906

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