Sunday, December 8, 2024

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका              ब्लॉग अंक-04/362                         दिसम्बर 2024

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 08.12.2024
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 



बसन्ती पंवार





01. बचपन


हमने

मन के भीतर

थोड़ा-सा बचपन

सँभालकर/रखा है...

ताकि जीवन की

कठिन डगर पर

उन्मुक्त होकर

खेलते हुए चलते रहें...


02. चाय


जिंदगी की

चाय में कोई

शक्कर-सा घुल जाए...

यह मधुमेह-सी

उबली हुई जिन्दगी

बहुत फीकी लगती है...


03. डर


हम

रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
कीटाणुओं से

इतना/डरते हैं

कि कभी

रोटी को दाल से

धोकर... 

तो कभी/धोखे भी

धोकर खाते हैं

  •  90, महावीरपुरम, चौपासनी फनवर्ल्ड के पीछे, जोधपुर-342008, राज./मो. 09950538579  

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