समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-04/363 दिसम्बर 2024
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
संगीता गाँधी
01.
बाट जोहता है पिता
अब उसी रास्ते पर बेटे की
जिस पर उसके पिता की
आँखें टँगे-टँगे मौन हुईं।
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
एक ठंडी आग मेरे भीतर
युगों से जलती है।
काश कोई एक टुकड़ा धूप
इस हिम युग को पिघला सकता।
03.
आँखों की किवाड़ें तरसती हैं
नींद मुद्द्त हुई खटखटाती नहीं
सपने फिर भी दबे पाँव
साँकल खोल चले आते हैं।
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