समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03/300 अक्टूबर 2023
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 01.10.2023
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 01.10.2023
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
चक्रधर शुक्ल
01.
धुंध
शहरों को
आगोश में लपेट रही
जीवन को
ताश के पत्तों की तरह
फेंट रही।
02. डराना
बर्फ़ीली हवाओं का
बार-बार
दरवाजा खड़खड़ाना
उसे डराता
बूढ़ा काँप-काँप जाता।
03.
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रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
आज का समय
यह बताता है,
विज्ञापन का युग है
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कुर्सी दिलाता है!
- एल.आई.जी.-1, सिंगल स्टोरी, बर्रा-6, कानपुर-208027(उ.प्र)/ मो. 09455511337
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