समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /251 अक्टूबर 2022
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 23.10.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
अंजू दुआ जैमिनी
01. हुनर
वह अपनी बात
ठीक से
लोगों के समक्ष
रख नहीं पाता
और
रह जाता है हकलाकर
फिर हर किसी के पास
कहाँ होता है
आँखों से
चेहरे को पढ़ने का हुनर
मेरे दोस्त!
02. उधारी
चार दिन की
यारी पर
तूने अपना
सर्वस्व लुटा दिया
और माँ के
निश्छल प्रेम की
उधारी
जो तुझ पर निकलती है?
03. नशेमन में
ये सितारे देख रही हो न?
टिमटिमा रहे हैं जो
![]() |
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
किसी बादल के पर्दे के पीछे
ये मिलकर खोज लाएँगे उसे
और सुनो!
अपने ख्यालों के नशेमन में
छिपाए बैठे हो जो चाँदनी
वह मैं ही तो हूँ।
- 839, संक्टर-21, पार्ट-2, फरीदाबाद-121001, हरियाणा/मो. 09810236253
No comments:
Post a Comment