समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 13 फ़रवरी 2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
सुनील गज्जाणी
01.
तुम मेरा बजूद हो
मगर
मैं तुमसे नहीं
भिन्न-भिन्न
अस्तित्व लिए
तुम एक अहसास हो
जो गुजरता है
मुझसे होकर!
02.
मैं, जन्मा ही नहीं
छायाचित्र : डॉ. बलराम अग्रवाल |
तुममें
हैरत में हो?
क्या जन्मना गर्भ से ही होता है?
तुम्हारे हृदय से भी तो
जन्म सकता था मैं
प्रेम के रूप में
जो संभव नहीं हो पाया!
- सुथारों की बड़ी गुबाड़, बीकनेर-334005, राज./मो. 09950215557
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