समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 12 फ़रवरी 2018
रविवार : 11.02.2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
पुष्पा मेहरा
01.
रात हुई, अँधेरा छाने लगा
अमावस सारी ही रात
तारों की रौशनी में
जीवन-पल गिनती रही।
02.
आई थी झंझा
काँपी थी लता,
अवलम्बन पा पेड़ का
वह जी गई।
03.
वह ताबूत नहीं
किसी की ममता, दो आँखें
प्यार और- और क्या ?
किसी जुझारू का देश प्रेम है।
04.
मन एक सड़क
असंख्य गड्ढों से भरा,
समा जाता जो इसमें
लौट के नहीं आता
शायद कोई ब्लैक होल है !!
05.
मैं फ़िर लौटूँगा
तुम सारे द्वार
खुले रखना।
06.
भोर होगी
उड़ आएँगीं तितलियाँ वही
रात भर जिन्हें
सपनों ने जगाया था !!
- बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598
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