समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 11 फ़रवरी 2018
रविवार : 04.02.2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सीमा स्मृति
01. याद
याद कोई बादल नहीं,
जो आये और चली जाए
ये तो वो
थिर सूरज हैं
जो चमकता क्षण प्रति क्षण
02. ‘मूक’
स्पर्श केवल, अंधकार की जबान नहीं,
यह भाषा है,
प्रत्येक जीवन की
भट्टी के अंगारो की तरह उकेरा है
हर स्पर्श से पूर्व ‘जिन्दगी’ ने।
03.
खामोश हो गई, हवा
इस डर से
आदतें भी अजीब हुआ करती हैं
साँस लेने को
ज़िन्देगी समझने की आदत।
04.
सागर से पूछा
रेखाचित्र : राजेंद्र परदेसी |
कैसे हज़ारो राज
अपने तहों में छिपाये रहते हो
सागर मुस्कराया और बोला
मैं इंसान नहीं
जो अनभिज्ञ रहे
अपने ही मन की थाह से।
05.
तलाशती रही ज़िन्दगी-साथ
उनके भी साथ, जो
चलते रहे साथ-साथ।
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