समकालीन क्षणिका खण्ड-01 अप्रैल 2016
रविवार : 12.02.2017
क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित डॉ.शैलेष गुप्त ‘वीर’ की क्षणिकाएँ।
शैलेष गुप्त ‘वीर’
01.
धूप/धरती से
मिलने चली,
आज/कोहरे की
एक न चली!
02.
मैंने जी भर
निहारा सौन्दर्य
पाकर स्नेहिल निमन्त्रण
राख हो गये प्रणय-प्रण!
03.
हवा बहकी
निशा चहकी
महका कोना-कोना,
बेचैन करे
तितलियों का रोना!
04.
वैश्विक शक्तियाँ
तिरंगे तले आयेंगी,
मेहनत रंग लायेगी!
05.
बेटों की मुस्कान के लिए
माँ टुकडों में बँट गयी,
ज़िन्दगी कट गयी!
शैलेष गुप्त ‘वीर’
01.
धूप/धरती से
मिलने चली,
आज/कोहरे की
एक न चली!
02.
मैंने जी भर
निहारा सौन्दर्य
पाकर स्नेहिल निमन्त्रण
राख हो गये प्रणय-प्रण!
03.
हवा बहकी
निशा चहकी
महका कोना-कोना,
बेचैन करे
तितलियों का रोना!
04.
![]() |
रेखाचित्र : रमेश गौतम |
वैश्विक शक्तियाँ
तिरंगे तले आयेंगी,
मेहनत रंग लायेगी!
05.
बेटों की मुस्कान के लिए
माँ टुकडों में बँट गयी,
ज़िन्दगी कट गयी!
- 24/18, राधा नगर, फतेहपुर (उ.प्र.)-212601/मोबा. 09839942005
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