समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-04/373 फरवरी 2025
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
सुनील गज्जाणी
01.
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
सौंपती अपनी विरासत
निसंकोच
सृष्टि के जन्म से
विराम तक
अनथक, अनंत
तुम
अपने जन्म से ही
शाश्वत हो, नश्वर हो
मृत्यु !
02.
मृत्यु तुम
स्वयं का वरण कब करोगी
पता है तुम्हें?
शायद नहीं होगा
संभवतः तब
जब कोई जन्म ही
नहीं होगा
तब तुम्हारा
औचित्य कैसा!
03.
कितनी चतुराई
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छायाचित्र : उमेश महादोषी |
और, दबे पाँव लौटती हो
जब तुम
अपना चाहा काम कर
भूचाल-सा ला देती हो
तुम मृत्यु!
- सुथारों की बड़ी गुवाड़, बीकानेर-334005, राजस्थान/मो. 09950215557