समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03/315 जनवरी 2024
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 14.01.2024
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
रमा द्विवेदी
01.
समानान्तर रेखाएँ
किसी को काटती नहीं,
इसलिए जीवन का बीजगणित,
अर्थवान हो उठता है।
02.
रेखाओं को यूँ ही
व्यर्थ मत करो,
क्योंकि यही रेखाएँ होती हैं
सभ्य संस्कृति और-
सभ्य समाज की धरोहर।
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रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
03.
रेखाएँ खींचना मगर
हथेली की लकीरों की तरह
कम से कम मिल सकें
कहीं पर तो हम!
- फ़्लैट नं. 102, इम्पीरिअल मनोर अपार्टमेंट, बेगमपेट, हैदराबाद-500016, तेलंगाना
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