समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03/306 नवम्बर 2023
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 12.11.2023
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 12.11.2023
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
उमेश महादोषी
01.
मैं उन परिभाषाओं में
यकीन नहीं करता
जो भूख को नारों में
और नारों को
पेटों में बदलती हैं
मौका तलाशती सदैव
चाकू बनकर उछलती हैं
02.
एक इशारे पर उछल जाना
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चित्र : प्रीति अग्रवाल |
और दूसरे पर
शान्त होकर बैठ जाना
ये किस बात की निशानी है
एक तराजू है/और
भूख, पेट, नारों और जुबानों की
मेहरबानी है!
- 121, इंदिरापुरम, निकट बीडीए कॉलोनी, बदायूं रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मो. 09458929004
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