समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /228 मई 2022
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 15.05.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 15.05.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
राजेश ‘ललित’
01.
मेरी ख़्वाहिश थी
मैं भी हँसूँ
कभी मुस्कराऊँ
मगर ये ख़्याल ही रहा
अभी तक उस
शिकन से डर लगता है
02.
रास्ता सही था
कीचड़ पर पांव पड़ा
फिसल गया कोई
रास्ता बदल गया
मंज़िल भी बदल गई
03. विकलांग
सब कुछ ठीक था
हाथ भी; पाँव भी
मन भी; मस्तिष्क भी
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रेखाचित्र : राजवंत राज |
बस जीवन हुआ
बिखरा-बिखरा सा
मैं पड़ा विकलांग-सा
बिना हिले डुले
प्रतिक्रिया विहीन।
- बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484
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