Sunday, September 6, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /140                      सितम्बर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 06.09.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


राजेश ‘ललित’ शर्मा





01.

थे मौजूद हम भी 
उसी महफ़िल में
देखा तुमने भी
कनखियों से 
और निकल गये।

02.

आना-जाना इधर,
कम हो गया अपने घर।
लोगों का बस;
मतलब निकल गया है।
रेखाचित्र : (स्व ) पारस दासोत 

03. 
     
पहना दो मुझे
चश्मा सच का
कोई सच भी कहता है
मुझे झूठ नज़र आता है

04 .

जब तक ख़्वाब था
बहुत हसीन था!
ज़मीन हक़ीक़त की मिली;
वो पत्थर हो गया
  • बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484

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