समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 17 मार्च 2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
बलराम अग्रवाल
01.
गौरैया-कोयल-मैना
सावन-वसंत-शरद
सभी कुछ है
यहाँ से वहाँ
वहाँ से वहाँ
घर भर में
उछलती-फुदकती-चिहुँकती-कुहुकती
बिटिया अगर है घर में।
02. जगह-जगह बुलन्दशहर
माता-पिता
नहीं चाहते कैद कर लेना
न बेटियाँ ही चाहती हैं
हो जाना कैद
घर में
लेकिन डराते हैं
रास्ते में आ जाने वाले
बुलन्दशहर!
03. दुम
(कुछ दुमकटे कुत्तों को देखकर)
दुम तो
दिमाग में होती है
बदन पर नहीं
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
और वहीं पर
हिलती भी रहती है
मालिकों
और
लजीज
खानों के आगे।
04.
शब्द को
न शूल बनाओ
न सुई करके
हवा में फेंको
फूट जायेंगी
सभी ओर हैं- मेरी आँखें
- एम-70, उल्धनपुर, दिगम्बर जैन मन्दिर के पास, नवीन शाहदरा, दिल्ली/मो. 08826499115
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