समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 15 मार्च 2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
रजनी साहू
01.
पथ प्रदर्शक बनी
घूंघट में मशालें
सहमे उजाले
अब तो
साहस से वीरांगनाओं को गले लगा ले
02.
मैं सोयी
अंधकार जाग रहा था
रेखाचित्र : स्व. बी. मोहन नेगी |
अंधकार सो गया
03.
अंधकारों की परम्परा त्यागकर
मीलों मैं अकेला चलता रहा
उजालों की तलाश में
वैराग्य का साम्राज्य मिला और
मैं सिद्धार्थ से बुद्ध हो गया
- बी-501,कल्पवृक्ष सीएचएस, खण्ड कॉलौनी, सेक्टर 9, कॉर्पोरेद्वान बैंक के पीछे, प्लाट नं. 4, न्यू पानवेल (पश्चिम)-410206, नवी मुंबई (महाराष्ट्र)/मोबाइल: 09892096034
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