समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /236 जुलाई 2022
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 10.07.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
पुष्पा मेहरा
01.
उसे मजदूर कहूँ कि मजबूर
जिसने शहर आकर
ऊँची दृऊँची इमारतों की
ईंट से ईंट जोड़ी
घर-परिवार से जुदा होने की
मज़बूरी झेली।
02.
सड़क किनारे
पत्थर तोड़ती मजदूरिने नहीं जानतीं
‘मजदूर दिवस’
वे तो सामने बिछी रोड़ी, बदरपुर
और ईंटों में जठराग्नि बुझाने की
विधा ही जानती हैं और
गिट्टियों के अम्बार पर लेटे
अपने दुधमुँहे की किलकारी
देखने की खातिर-
आधे-पौने में ही संतोष करती हैं 
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया
03.
एक कींचड़ में सने पाँव ले
गारा ढोता है, दूसरा
ऊँची इमारतों की नींव गढ़ता है
ख़ुद बच्चों की नींव मजबूत रखने की
कोशिश में मज़दूर
ख़ानाबदोश ही रह जाता है।
- बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598

No comments:
Post a Comment